DB DIGITAL NEWS

Ticker

5/recent/ticker-posts

150 साल पुराने कर्बलाई अलम की ज़ियारत, जैदपुर में आठ मोहर्रम की रात निकला जुलूस

150 साल पुराने कर्बलाई अलम की ज़ियारत, जैदपुर में आठ मोहर्रम की रात निकला जुलूस

हज़रत अब्बास अलमदार की शहादत पर अश्कों में डूबे अज़ादार

जैदपुर बाराबंकी। वक्फ इमामबाड़ा गढ़ी जदीद तालुकदार जैदपुर में आठ मोहर्रम की रात धार्मिक आस्था और ग़म-ओ-अदब का ऐतिहासिक नज़ारा देखने को मिला। कर्बला (ईराक) से लाए गए 150 वर्ष पुराने मुबारक अलम की ज़ियारत कराई गई, जिसके बाद मजलिस-ए-अज़ा के आयोजन के साथ अलम का जुलूस भी निकाला गया।

मजलिस का खिताब मौलाना क़मर अब्बास ख़ान ने दिया, जिसमें उन्होंने विलायते अली पर बयान करते हुए कहा कि हज़रत अली से मोहब्बत को रसूल-ए-पाक (स.अ.) ने ईमान की निशानी बताया है। मौलाना ने हज़रत अब्बास अलमदार की बहादुरी, वफादारी और कर्बला में शहादत के दर्दनाक वाक़यों का ज़िक्र किया, जिसे सुनकर मजलिस में मौजूद अज़ादारों की आंखें नम हो गईं।

मजलिस से पहले सईद ज़ैदपुरी ने सोज़खवानी और सैयद कामिल रिज़वी ने पेशख्वानी की। इसके पश्चात अंजुमन पैगाम-ए-हुसैनी जैदपुर और अंजुमन ज़ुल्फ़िकारे हैदरी सीतापुर की नौहाख़्वानी व सीनाज़नी से पूरा माहौल मातम में डूब गया।

इस मौके पर हज़ारों की संख्या में जैदपुर और आसपास के क्षेत्रों से अज़ादारों की मौजूदगी रही, जिन्होंने अलम पर दुआएं मांगी और इमाम हुसैन के भाई हज़रत अब्बास की शहादत को याद करते हुए अपने ग़म का इज़हार किया।

एक सदी से अधिक पुराना यह अलम न सिर्फ अकीदे का मरकज़ है, बल्कि कर्बला की कुर्बानी को ज़िंदा रखने वाला एक जिंदा दस्तावेज़ भी है, जो हर मोहर्रम हमें वफादारी, हिम्मत और ईमान की मिसाल याद दिलाता है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ