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वो जो भागे थे कानून से… आखिरकार पहुंच ही गए सलाखों तक

30 साल पुराना था जुर्म, लेकिन मिला इंसाफ!

ऑपरेशन कन्विक्शन में जीआरपी बाराबंकी की जीत, तीन अपराधियों को कोर्ट ने सुनाई सजा

बाराबंकी। कहते हैं कानून की नजर से कोई नहीं बचता, देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं होता। थाना जीआरपी बाराबंकी ने तीन दशक पुराने मुकदमों में अभियुक्तों को सजा दिलाकर एक बार फिर साबित कर दिया कि न्याय की डगर भले लंबी हो, लेकिन उसका मंज़िल साफ होती है। पुलिस अधीक्षक रेलवे अनुभाग लखनऊ के नेतृत्व में चलाए जा रहे ऑपरेशन कन्विक्शन के तहत थाना जीआरपी बाराबंकी ने 1993 और 1995 में दर्ज तीन मुकदमों में प्रभावी पैरवी कर तीन अपराधियों को दोषसिद्ध कराकर सजा दिलाई।

वक्त बीता, लेकिन इंसाफ ज़िंदा रहा

06 जून 1993 को स्टेशन परिसर में हुए विवाद व धमकी के मामले में आरोपी मनोज कुमार उर्फ पहाड़ी और जमील के खिलाफ जीआरपी बाराबंकी ने मुकदमा दर्ज किया था।

कोर्ट में वर्षों तक चली सुनवाई और पुलिस की सक्रिय पैरवी के बाद आखिरकार दोनों आरोपियों को जेल में बिताई अवधि के साथ 1500-1500 रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई गई।

20 अगस्त 1995 को फौजुल्लागंज निवासी रामाधारा को अवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

उसे भी कोर्ट ने धारा 4/25 आर्म्स एक्ट के तहत दोषी मानते हुए जेल अवधि व रुपए 700 जुर्माना की सजा दी।

कोर्ट ने कहा—दोषी कोई भी हो, बच नहीं सकता

अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट संख्या 16 ने तीनों मामलों में अपने आदेश में साफ किया कि पुलिस की मेहनत, साक्ष्यों और गवाहों की गंभीरता ने आरोपियों को सजा तक पहुंचाया।

कौन हैं ये आरोपी ?

1. मनोज कुमार उर्फ पहाड़ी, निवासी: अंगद नगर, सिविल लाइन, थाना कोतवाली नगर, बाराबंकी

2. जमील पुत्र बकरीदी, निवासी: मकान नं. 495, घोसियाना, थाना कोतवाली नगर, बाराबंकी

3.रामाधारा पुत्र कालीदीन वर्मा, निवासी: फौजुल्ला गंज, लखनऊ

थाना जीआरपी की टीम बनी नज़ीर

पुलिस उपाधीक्षक (रेलवे-द्वितीय) हृषीकेश यादव के पर्यवेक्षण में थानाध्यक्ष जीआरपी बाराबंकी व अभियोजन अधिकारी की टीम ने मुकदमों की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण गवाहों को समय से कोर्ट में पेश किया, जिससे फैसले में देरी नहीं हुई।


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