गांव की ‘डिजिटल दीदी’ : सुंदरी शेख ने बदली टिकवामऊ की तस्वीर
अपने खर्चे पर लगवाए 16 वाई-फाई बॉक्स, बच्चों से लेकर महिलाओं तक को जोड़ा डिजिटल इंडिया से
पूरेडलई बाराबंकी। जहां सरकारी योजनाएं अक्सर सिर्फ फाइलों में सजी-संवरी रह जाती हैं, वहीं टिकवामऊ ग्राम पंचायत की सुंदरी शेख ने जमीनी बदलाव की एक मिसाल पेश की है। बी.कॉम स्नातक और यूपीएससी की तैयारी कर रही सुंदरी शेख ने अपने गांव को डिजिटल इंडिया से जोड़ने का बीड़ा खुद उठाया — बिना किसी सरकारी मदद या सम्मान की अपेक्षा के।
शादी के बाद गांव में बसा सपना, इंटरनेट से जोड़ा हर कोना
मूल रूप से महाराष्ट्र की रहने वाली सुंदरी की शादी छह वर्ष पूर्व टिकवामऊ निवासी आशिक बाबू शेख से हुई, जो इस समय विदेश में कार्यरत हैं।
सुंदरी ने देखा कि गांव के बच्चे, महिलाएं और युवा डिजिटल सेवाओं से वंचित हैं।
तब उन्होंने अपने निजी खर्चे से गांव के 16 घरों की छतों पर वाई-फाई बॉक्स लगवाए, जिनमें ओपन पासवर्ड रखा गया ताकि हर कोई फ्री इंटरनेट से जुड़ सके।
गांव के युवाओं अब्बास, सद्दाम और अकबर का कहना है कि आज बच्चे ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं, महिलाएं सरकारी योजनाएं समझ पा रही हैं और बेरोजगार युवक ऑनलाइन फॉर्म भर पा रहे हैं, तो इसका पूरा श्रेय सिर्फ सुंदरी शेख को जाता है।
न चंदा, न प्रचार — बस सेवा का भाव
सुंदरी कहती हैं, "यह मेरा फर्ज था, सम्मान की अपेक्षा नहीं थी।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन यदि उनके कार्यों का श्रेय खुद लेने लगे और योगदान देने वालों को नज़रअंदाज करे, तो दुःख होता है।
प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
खंड विकास अधिकारी शिव जीत ने यह स्वीकार किया कि सुंदरी शेख ने गांव के कई स्थानों पर वाई-फाई की सुविधा दी है। हालांकि पंचायत भवन में भी वाई-फाई है, लेकिन गांव के लोग बताते हैं कि वह सेवा कभी-कभार ही चलती है, जबकि सुंदरी का नेटवर्क निरंतर चलता रहता है।
प्रोफाइल – सुंदरी शेख
जन्म स्थान: महाराष्ट्र
शिक्षा: बी.कॉम स्नातक
विवाह: आशिक बाबू शेख (टिकवामऊ, बाराबंकी)
वर्तमान गतिविधि: यूपीएससी की तैयारी
समाजसेवा कार्य:
16 घरों की छतों पर वाई-फाई बॉक्स
पूरे गांव को मुफ्त इंटरनेट
बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई, महिलाओं की डिजिटल सशक्तिकरण में योगदान
सरकारी सहायता: शून्य
प्रेरणा: “गांव की बेटियों और बच्चों को डिजिटल दुनिया से जोड़ना”
लक्ष्य: समाजसेवा के साथ प्रशासनिक सेवा में जाना
ऐसी महिलाएं नारी शक्ति की असली मिसाल हैं, जो बिना मंच के भी परिवर्तन की मशाल जला रही हैं।
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