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जैदपुर में इसाले सवाब की मजलिस, मौलाना कल्बे अहमद नकवी ने किया खिताब


जैदपुर में इसाले सवाब की मजलिस, मौलाना कल्बे अहमद नकवी ने किया खिताब

कर्बला की जंग सिर्फ मैदान की नहीं, उसूलों की थी – मौलाना कल्बे अहमद नकवी

अज़ादारों की आंखें नम, इमामत की जिम्मेदारी और कुर्बानी का किया तज़्किरा

जैदपुर बाराबंकी। वक्फ इमामबाड़ा गढ़ी जदीद तालुकदार जैदपुर में हकीम प्रो. सैयद मोहम्मद अकबर रिज़वी की अहलिया मरहूमा की इसाले सवाब की मजलिस का आयोजन अकीदत और एहतराम के साथ किया गया।

इस मौके पर मशहूर आलिमे-दीन और मौलाना कल्बे जव्वाद के सुपुत्र मौलाना कल्बे अहमद नकवी साहब ने मजलिस को खिताब फरमाया। उन्होंने कहा कि इमामत महज कोई धार्मिक ओहदा नहीं बल्कि एक भारी जिम्मेदारी है, जो उम्मत की रहनुमाई और हिदायत के लिए अल्लाह की ओर से अहलेबैत को अता की गई है।

"यज़ीद ने इस्लाम को मोड़ना चाहा, इमामत ने बचाया रास्ता"

मौलाना ने अपने खिताब में कर्बला की हकीकत और इमाम हुसैन की शहादत का दर्दनाक तज़्किरा करते हुए कहा कि यज़ीद इस्लाम को अपने मुताबिक ढालना चाहता था, लेकिन इमाम हुसैन ने हक़ और इस्लामी उसूलों की हिफाजत के लिए जान की बाज़ी लगा दी।

उन्होंने कहा, “इमामत की असल पहचान कर्बला में नज़र आती है। इमाम हुसैन ने फर्ज की अदायगी में न सिर्फ जान दी, बल्कि अपने अहलेबैत को भी कुर्बान कर दिया। ये जंग जमीन की नहीं, जमीर और उसूलों की थी।”

मसायब-ए-अहलेबैत पर अज़ादार हुए गमगीन

मौलाना कल्बे अहमद नकवी ने कर्बला के बाद अहलेबैत पर ढाए गए जुल्म, बीबी ज़ैनब की कैद और शाम के दरबार में असीर अहलेबैत के मसायब बयान किए। जैसे-जैसे मसायब का ब्यान हुआ, मजलिस में मौजूद अज़ादारों की आंखें नम होती गईं और सिसकियां गूंज उठीं।

मजहबी अकीदत और समाजी एकजुटता की मिसाल

इस मजलिस के जरिए न सिर्फ मजहबी अकीदत का इज़हार हुआ, बल्कि जैदपुर में मिल्लत की एकता और इसाले सवाब के जरिए सामाजिक सौहार्द की भावना भी उजागर हुई। आयोजन में क्षेत्र के अज़ादारों सहित कई सामाजिक और धार्मिक व्यक्ति मौजूद रहे।


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